भारत को चीन की गिरती आर्थिक दर से कोई फर्क नहीं

एलायंस टुडे ब्यूरो

नई दिल्ली। चीन की अर्थव्यवस्था साल 2018 में 6.6 फीसद की रफ्तार से बढ़ी है। 1990 के बाद से यह उसकी सबसे धीमी आर्थिक वृद्धि दर है। दिसंबर में खत्म हुई तिमाही में चीन की आर्थिक वृद्धि दर 6.4 फीसद रही, जो कि इससे पहले की तिमाही में 6.5 फीसद थी। साल 2017 की आर्थिक वृद्धि दर 6.8 फीसद थी। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को अमेरिका के साथ व्यापार मोर्चे पर जारी तनाव और निर्यात में गिरावट की सर्वाधिक चपत लगी है। पिछले एक दशक में चीन इंटीग्रेटड सर्किट, कच्चा पेट्रोलियम, लोहा और तांबा खरीदकर एशिया के अधिकांश देशों के लिए सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है। इसलिए यदि चीन की आर्थिक वृद्धि दर धीमी पड़ती है और वह सामान नहीं खरीदता है तो इससे सभी भागीदार देश प्रभावित होंगे। विश्व बैंक के अनुसार, एशिया प्रशांत क्षेत्र में विकास दर इस साल पिछले साल 6.3 फीसद की तुलना में 6 फीसद ही रह सकती है।

अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर की वजह से चीन का आर्थिक पक्ष कमजोर हुआ है। 2018 की शुरुआत से ही दोनों के बीच ट्रेड वॉर जारी है। दोनों देश एक दूसरे के माल पर आयात शुल्क में बढ़ोतरी कर रहे हैं। पिछले साल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के 250 अरब के माल पर आयात शुल्क में 25 फीसद तक की बढ़ोतरी की। वहीं चीन ने अमेरिका के 110 अरब के माल पर आयात शुल्क बढ़ाया। दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था भारत को चीन की गिरती आर्थिक दर से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि भारत अन्य एशियाई देशों की तुलना में चीन को उतना निर्यात नहीं करता है। विश्व बैंक ने भारत से इस वर्ष 7.3 फीसद वार्षिक वृद्धि और अगले दो वर्षों में 7.5 फीसद वृद्धि की उम्मीद की है। इस साल चुनाव होने के बावजूद स्थिर विकास जारी रहने की उम्मीद है। चीन की सरकार घरेलू खपत पर अधिक निर्भर रहने के लिए निर्यात की अगुवाई वाले विकास से दूर हटने पर जोर दे रही है। यहां के नीति निर्माताओं ने अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए हाल के महीनों में कई प्रयास किए हैं। सुस्ती दूर करने के लिए चीन अपनी अर्थव्यवस्था में 80 अरब डॉलर झोंक चुका है। चीन में 2019 में कुछ कर में कटौती की भी उम्मीद है। जेपी मॉर्गन के अनुसार इससे विकास दर लगभग आधा फीसद प्रतिशत बढ़ सकती है।

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