
बुधवार-20 मार्च-चैमासी चैदस, छोटी होली, होलिका दहन और पूर्णिमा उपवास (शास्त्रों के अनुसार भद्रा नक्षत्र में होलिका दहन पूर्णतया वर्जित है। यदि भद्रा नक्षत्र में होलिका दहन कर दिया तो पीड़ा उठानी पड़ सकती है। इस दिन पुरुषों को भी हनुमानजी और भगवान भैरवदेव की विशिष्ट पूजा अवश्य करनी चाहिए।)
गुरुवार-21 मार्च-होली, वसंत पूर्णिमा, दोल पूर्णिमा, अष्टाह्निका विधान पूर्ण, फाल्गुन पूर्णिमा, लक्ष्मी जयन्ती, चैतन्य महाप्रभु जयन्ती, वसन्त सम्पात, पैन्गुनी उथिरम। (वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण त्योहार है होली। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को पड़ने वाला रंगों का यह त्योहार सामाजिक भेदभाव को मिटाकर सबको गले मिलने का अवसर उपलब्ध कराता है। इस दिन हर वर्ग के लोग टोलियां बनाकर अपने घर से निकलते हैं और दूसरों के घर जाकर रंग लगाते हैं, मिठाई खाते, खिलाते हैं और एक दूसरे को शुभकामनाएं प्रदान करते हैं।)
शुक्रवार-22 मार्च-चैत्र प्रारम्भ, भाई दूज, भ्रातृ द्वितीया और गुड फ्राइडे (गुड फ्राइडे को होली फ्राइडे, ब्लैक फ्राइडे या ग्रेट फ्राइडे भी कहते हैं। यह ईसाई धर्म के लोगों द्वारा कैलवरी में ईसा मसीह को सलीब पर चढ़ाने के कारण हुई मृत्यु के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।)
शनिवार- 23 मार्च- शिवाजी जयन्ती (छत्रपति शिवाजी महाराज ने 1674 में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। उन्होंने कई वर्ष औरंगजेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। सन 1674 में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और छत्रपति बने।)
रविवार-24 मार्च-संकष्टी चतुर्थी, (ईस्टर प्रत्येक चन्द्र मास में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है।)
होली में करें कुदरती रंगों का प्रयोग
रंगों के त्योहार होली पर तो रंग खिलते ही हैं, हमारे भारतीय जीवन में खुशी के दूसरे मौके भी आते हैं जब हमें बाजार से कृत्रिम रंग खरीदने पड़ते हैं। जान पहचान के दुकानदार से खरीदते हुए भी डर लगा रहता है कि होली खेलते हुए रंग आँख में गिर गया, चेहरे पर ज्यादा लग गया या त्वचा पर खुजलाहट, रूखापन जैसी समस्या उग आई तो परेशानी होगी। रंगों से बदरंग होने से बचने के लिए हर बरस कितने ही लेख छापे जाते हैं। रंग उतारने के लिए अलग से उत्पाद बेचे जाते हैं।
कुछ भी हो हर्बल या इकोफ्रेंडली के नाम पर पूरे विश्वास के साथ बेचे जा रहे रंगों पर भी हम पूरा भरोसा तो नहीं करते क्यूंकि अब जमाने व बाजार की हवा सिर्फ पैसे कमाने के लिए चलती है। इस ट्रेंड से तंग आकर लोग कुदरती रंगों के प्रयोग को प्रोत्साहित कर रहे हैं। इन रंगों को घर पर ही बनाया जा सकता है। इसमें मुख्यतः कुछ फूल शामिल हैं जिनके वृक्ष और पौधे देश में उपलब्ध हैं लेकिन हमें उनकी गुणवत्तापूर्ण उपयोगिता का पता नहीं है। इन वृक्षों को ज्यादा जगह उगाया जाता इनकी देखभाल निरंतर की जाती तो इनसे प्राप्त उपयोगी रंग, ईमानदार रंगरेज की तरह हमारे जीवन के उत्सवों में सुख देने वाले रंग भरते। जिस तरह से हमारी रसोई के खाद्यों, सब्जियों, फलों व मसालों में कितने ही चिकित्सक छिपे हैं उसी तरह वृक्षों, पौधों, फूलों, पत्तियों यहाँ तक कि मिट्टी और जड़ों में भी लाभकारी रंग व अन्य उपयोगी तत्व उपलब्ध हैं। बस इन्हें खुली आँख और समझदार दिमाग से देखने की जरूरत है।
भगवान कृष्ण द्वारा खेला जाने वाला रंग बनाने के लिए आज भी अनेक जगह टेसू के फूल उपलब्ध हैं। यह रंग पारम्परिक रंग माना जाता है। इनकी पंखड़ियों को सुखा कर चंदन पाउडर या आटे में मिलाकर सूखा केसरी रंग तैयार हो जाता है। हालांकि पानी की कमी को ध्यान में रखते हुए हमें सूखे रंग से होली खेलनी चाहिए लेकिन कम मात्रा में गीला रंग बनाने के लिए टेसू के फूलों को किसी बर्तन में पानी में रात भर भिगोएँ, सुबह तक फूल रंग छोड़ देंगे और रंग तैयार हो जाएगा। हरा रंग बनाने के लिए अच्छी क्वालिटी के मेहँदी पाउडर को आटे में मिलाने से हरा रंग बन जाएगा। बेस बनाने के लिए अरारोट, चंदन, पिसा चावल या आटा में से कुछ भी प्रयोग कर सकते हैं। गीला हरा रंग बनाने के लिए धनिया, पालक या अन्य सब्जियाँ पीसकर पानी में मिलाएँ। लाल रंग के लिए सिंदूर और चंदन को मिला सकते हैं। इसके इलावा लाल गुड़हल के फूल की पत्तियों को छाँव में सुखाकर उसका पाउडर बनाकर चंदन मिलाकर लाल रंग बन सकता है। गीले के लिए इसमें पानी मिला लें। पलिता, मदार, पांग्री के फूलों से भी लाल रंग मिल सकता है। गहरे गुलाबी रंग के लिए चुकंदर का पेस्ट बनाकर धूप में सुखा लें। इसके पाउडर को चावल के आटे या अन्य आटे में मिलाकर सूखा रंग तैयार हो जाएगा। गीले के लिए पानी में कुछ टुकड़े चुकंदर के डालने से ही रंग बन जाता है। हरसिंगार के फूलों से नारंगी रंग बनाया जा सकता है। पीला रंग बेसन में हल्दी डालकर बन जाता है। बेसन की जगह मुलतानी मिट्टी भी प्रयोग की जा सकती है। गेंदे के पीले फूलों को पानी में उबाल कर, अमलतास व पीले सेवन्ती फूलों से भी रंग निकाल सकते हैं। अनार के छिलकों को उबाल कर, बुरांस के फूलों से भी रंग निकालते हैं। नीले रंग के लिए नील के पौधों पर निकलने वाली फलियां और नीले गुलहड़ के फूलों का प्रयोग हो सकता है। कुदरती तरीके से निकाले गए रंगों से होली खेलने की संभावनाएं अनंत हैं। थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी होली का आनंद कई गुणा नया, स्वस्थ व सुरक्षित हो जाएगा।