
एलायंस टुडे ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में हो रही रोजाना सुनवाई के चलते हिंदू पक्ष की दलीलें पूरी हो चुकी हैं। 16 दिन की सुनवाई में हिंदू पक्ष (रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा) के वकीलों ने अपनी बात को पूरी प्रमाणिकता के साथ रखने की भरसक कोशिश की है। अब सबकी नजरें सोमवार से शुरू होने वाली मुस्लिम पक्ष की दलीलों पर हैं कि वे किस तरह से अपने दावे को सामने रखेंगे।
सुनवाई के पहले दिन ही हिंदू पक्ष के निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने कहा कि विवादित भूमि पर 1949 के बाद से नमाज नहीं हुई, इसलिए मुस्लिम पक्ष का वहां दावा ही नहीं बनता है। उन्होंने कहा कि जहां नमाज नहीं अदा की जाती है, वह स्थान मस्जिद नहीं मानी जा सकती है।
मालिकाना हक का दावा कर रहे निर्मोही अखाड़े से कोर्ट ने पूछा कि क्या आपके पास कुर्की से पहले का राम जन्म स्थान के कब्जे का मौखिक या रेवेन्यू रिकॉर्ड है? जवाब में निर्मोही अखाड़े की ओर से कहा गया कि 1982 में एक डकैती हुई थी, जिसमें सारे रेकॉर्ड चले गए।
जस्टिस बोबड़े ने पूछा कि जिस तरह रामजन्मभूमि का विवाद कोर्ट के सामने आया है क्या दुनिया भर में किसी धार्मिक स्थान को लेकर दो समुदायों का कोई सवाल या विवाद कभी भी किसी अदालत में आया है? कोर्ट ने पूछा कि क्या जीसस क्राइस्ट बेथलहम में पैदा हुए थे, ऐसा सवाल कभी कोर्ट में आया क्या? इस पर रामलला के वकील परासरन ने कहा कि इस बारे में जानकारी नहीं है, पता करना पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने राम लला विराजमान के वकील से पूछा कि देवता के जन्मस्थान को मामले में कानूनी व्यक्ति के तौर पर माना जा सकता है? क्या जन्म स्थान वादी हो सकता है? राम लला के वकील परासरन ने कहा कि जन्मस्थली भी कानूनी व्यक्ति की तरह है, वह वादी हो सकता है। यहां परासन ने गंगा नदी, सूरज का जिक्र किया, जिन्हें कानूनी व्यक्ति होने का दर्जा प्राप्त है।
9 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने रामलला के वकील से पूछा कि क्या भगवान राम का कोई वशंज अयोध्या या फिर दुनिया में है? इस पर तब वकील ने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। हालांकि इसके बाद जयपुर राजघराने ने खुद को राम का वशंज बताया था। इसके बाद कुछ और लोग इसी दावे के साथ सामने आए।
उधर, सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई का मुस्लिम पक्ष ने विरोध भी किया था। मुस्लिम पक्षकार के वकील राजीव धवन ने कहा कि हमारे लिए यह संभव नहीं है कि हफ्ते में रोज कोर्ट का सहयोग करें। मैं प्रताड़ित महसूस कर रहा हूं। पहली अपील में दस्तावेज से संबंधित साक्ष्यों को देखना होता है और पढ़ना होता है। मेरे दस्तावेज उर्दू और संस्कृत में हैं, जिसे ट्रांसलेट किया जाना है। मेरी समझ से लगता है कि शायद जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को छोड़कर बाकी जजों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का जजमेंट भी पूरा नहीं देखा होगा। अगर रोजाना मामले की सुनवाई सोमवार से शुक्रवार तक होगी तो यह अमानवीय है। व्यावहारिक तौर पर मेरे लिए यह संभव नहीं है कि इतने कम समय में केस तैयार कर सकूं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप हफ्ते के बीच में ब्रेक चाहेंगे तो हम उसका ध्यान रखेंगे।
सुनवाई के छठे दिन राम लला के वकील वैद्यनाथन ने दलील दी कि पुराण और अलग-अलग समय के ब्रिटिश रेकॉर्ड राम और अयोध्या के बीच संबंधों की पुष्टि करते हैं और यह भी बताते हैं कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई। ब्रिटिश सर्वेयर एम. मार्टिन और जोसेफ टिफेंथलर ने भी कहा था कि लोगों का विश्वास था कि अयोध्या राम की जन्मस्थली है। इतना ही नहीं, यहां से सवाल भी उठा कि मंदिर कब तोड़ा गया। यहां बाबर और औरंगजेब दोनों का नाम आया।
सातवें दिन हिंदू पक्ष ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) का जिक्र करके कहा कि उसमें साफ बताया गया है कि नीचे विशाल मंदिर का ढांचा था। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया था कि मस्जिद के नीचे जो ढांचा था वह धार्मिक स्ट्रक्चर ही था, इसे साबित करें।
इस पर वैद्यनाथन ने कहा कि खुदाई में जो खंभे मिले थे उसमें राम के बाल स्वरूप की तस्वीर दिखती है। साथ ही खंभों में शिव तांडव और भगवान कृष्ण की भी तस्वीर है। मस्जिद में मानव और जीव की मूर्तियां नहीं होतीं। खंभों और छतों पर तस्वीर मस्जिदों में नहीं होती। तस्वीर मंदिर में होती है और ये हिंदू परंपरा के हिसाब से हैं। ये इस्लाम के खिलाफ है। सड़कों पर भी नमाज पढ़ी जाती है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह मस्जिद हो जाएगी और उनको मालिकाना हक मिल जाएगा। जो भी स्ट्रक्चर था वह कभी भी मस्जिद नहीं माना जा सकता क्योंकि वह मंदिर के स्ट्रक्चर पर था। जो तस्वीर है वह इस्लामिक आस्था और विश्वास के विपरीत है।
आठवें दिन राम लला विराजमान की ओर से कहा गया कि मौके से 12वीं शताब्दी के शिलापट्ट और शिलालेख मिले हैं, उनके मुताबिक वहां विष्णु का विशाल मंदिर था। मस्जिद बनाए जाने के बाद भी हिंदू वहां पूजा करते थे। राम लला के वकील ने मुस्लिम गवाहों के बयानों को भी अपनी दलील का आधार बनाया।
एएसआई की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए वैद्यनाथन ने कहा कि अयोध्या में मौजूद शिला पट्ट पर मगरमच्छ, कछुए की तस्वीरों का जिक्र है। इन चीजों का इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं है। मोहम्मद हाशिम ने बयान दिया था कि जिस तरह से मुसलमानों के लिए मक्का है, उसी तरह से हिंदुओं के लिए अयोध्या का महत्व है। एक मुस्लिम गवाह हसमतुल्ला अंसारी का बयान है कि अयोध्या राम के जन्म के कारण पवित्र मानी गई है। वहीं मोहम्मद कासिम अंसारी का बयान है जिसमें उन्होंने कहा था कि ये सही है कि बाबरी मस्जिद को हिंदू जन्मभूमि कहते थे।
सुनवाई के 9वें दिन रामलला विराजमान के वकील सी.एस वैद्यनाथन तर्क रख रहे थे। उन्होंने मंदिर के पक्ष में दलील दी कि अयोध्या के भगवान रामलला नाबालिग हैं। नाबालिग की संपत्ति को न तो बेचा जा सकता है और न ही छीना जा सकता है।
12वें दिन निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील कुमार जैन ने दलीलें पेश कीं। उन्होंने कहा कि हम देव स्थान का मैनेजमेंट करते हैं और पूजा का अधिकार चाहते हैं। जन्मस्थान पर अधिकार न तो देवता के नेक्स्ट फ्रेंड को दिया जा सकता है न ही पुजारी को। यह केवल जन्मस्थान का मैनेजमेंट करने वाले को दिया जा सकता है और निर्मोही अखाड़ा जन्मस्थान का मैनेजमेंट देखता है।
14वें दिन की सुनवाई के दौरान हिंदू पक्षकार के वकील ने कहा कि बाबरनामा में कहीं भी जिक्र नहीं है कि मीर बाकी ने मस्जिद बनावाई थी, मीर बाकी नामक किसी शख्स का जिक्र नहीं है। दरअसल, औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाई। गौरतलब है कि मुस्लिम पक्षकार की ये दलील है कि मस्जिद मीर बाकी ने बनवाई थी।