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अमेरिका। पद्म विभूषण से सम्मानित और रिकॉर्ड 9 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट हो चुके प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी ईसी जॉर्ज सुदर्शन का सोमवार को अमेरिका के टेक्सास में निधन हो गया। भारत में जन्मे सुदर्शन 86 वर्ष के थे और करीब 40 सालों से अमेरिका के टेक्सास विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत थे। सुदर्शन का जन्म केरल के कोट्टायम जिले के पल्लम गांव में 1931 में हुआ था। उन्होंने कोट्टायम के सीएमएल कॉलेज से अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास से मास्टर्स की डिग्री ली। इसके बाद उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल सांइसेज में होमी जहांगीर भाभा के साथ फंडामेंटल रिसर्च में भी थोड़े समय के लिए काम किया।
इस काम के बाद सुदर्शन रोचेस्टर विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क चले गए जहां उन्होंने रॉबर्ट मार्शल के साथ मिलकर पीएचडी छात्र के रूप में कार्य किया और 1958 में वहीं से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। फिर वह नोबेल पुरस्कार विजेता और प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी जूलियन स्चेविंगर के साथ पोस्ट डॉयरेक्टर के रूप में काम करने के लिए हार्वर्ड विश्वविद्यालय चले गए। उन्होंने सैद्धांतिक भौतिकी के क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान देते हुए प्रत्याशित संबद्धता और सुदर्शन-ग्लोबर निरुपण, दुर्बल अन्योन्य क्रिया का वी-ए सिद्धांत, टेक्योन, क्वांटम शून्य प्रभाव, विवृत क्वांटम निकाय और प्रचरण-सांख्यिकी आदि विषयों पर कार्य किया।
सुदर्शन को ग्लोबर रिप्रजेंटेशन बनाने के लिए साल 2005 में नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट भी किया गया था। इसे उन्होंने एक अन्य भौतिक विज्ञानी रॉय जे ग्लोबर के साथ मिलकर बनाया था। लेकिन वह नोबेल पुरस्कार लेने से चूक गए और रॉय को उस साल फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार अन्य वैज्ञानिकों के साथ दिया गया। ग्लोबर को यह पुरस्कार ऑपटिकल कोहेरेंस की श्क्वांटम थ्योरीश् के लिए दिया गया। इसके बाद फिजिक्स के क्षेत्र में इसको लेकर काफी बहस भी छिड़ गई थी। जिस पर रॉयल स्वीडिश अकादमी ने सफाई देते हुए कहा कि वह एक साल में तीन से अधिक वैज्ञानिकों को एक ही क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार नहीं दे सकते। सुदर्शन के महत्वपूर्ण कामों में से एक वीक फोर्स से संबंधित वी-ए थ्योरी पर किया गया काम भी है। साल 2007 में भारत सरकार ने उन्हें भारत के दूसरे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से भी नवाजा था। इसके अलावा उन्हें उनके कार्यकाल के दौरान सी.वी. रमन पुरस्कार (1970), बोस पदक (1977), थर्ड वर्ल्ड अकादमी ऑफ साइंसेज अवॉर्ड (1985), मायोराना पदक (2006), आईसीटीपी का दिराक पदक (2010) और केरल शस्त्र पुरस्कार, द स्टेट अवॉर्ड ऑफ लाइफटाइम अकोमप्लिशमेंट्स इन साइंस (2013) से भी सम्मानित किया जा चुका है।