नहीं बढ़ाने दी जाएगी बिजली दरें

एलायंस टुडे ब्यूरो
उ0 प्र0 पावर कारपोरेशन द्वारा एआरआर व बिजली दर प्रस्ताव 2017-18 पर आधी अधूरी कमियों का जवाब देकर जहाॅं बिजली दर प्रस्ताव स्वीकार कराने के लिये नियामक आयोग पर दबाव बना रहा है वहीं उ0 प्र0 राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने इस मुददे पर नियामक आयोग अध्यक्ष श्री देश दीपक वर्मा व सदस्य श्री एस के अग्रवाल के साथ लम्बी बैठक कर प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का पक्ष रखते हुए कहा जब तक बिजली कम्पनियों व पावर कारपोरेशन द्वारा एआरआर व बिजली दर प्रस्ताव में निकाली गयी समस्त कमियों पर अपना उचित जवाब आयोग को न जमा कर दें तब तक जल्दबाजी में बिजली दर प्रस्ताव को स्वीकार न किये जाने की मांग उठायी
उ0 प्र0 राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि यह कितने दुर्भाग्य की बात है कि पावर कारपोरेशन द्वारा आयोग को भेजे गये आधे अधूरे जवाब में ग्रामीण विद्युत उपभोक्ताओं की लगभग 253 प्रतिशत वृद्धि व किसानों की 80 प्रतिशत वृद्धि पर यह जवाब दिया गया है कि पहले 10 घण्टे सप्लाई मिलती थी अब गाॅंव की जनता को 18 घण्टे बिजली मिल रही है। इसलिये दरों मंे वृद्धि करना जरूरी है। सबसे बडा चैंकाने वाला मामला तो यह है कि पावर कारपोरेशन द्वारा ज्यादा वृद्धि प्रस्तावित किये जाने के पीछे एक तर्क यह भी दिया गया है कि वर्ष 2016-17 यानि कि सपा सरकार में पावर कारपोरेशन द्वारा उदय स्कीम के तहत 5.75 प्रतिशत औसत वृद्धि मांगी गयी थी लेकिन नियामक आयोग द्वारा केवल 3.18 प्रतिशत औसत वृद्धि दी गयी थी इसलिये अब व्यापक वृद्धि जरूरी है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ पावर कारपोरेशन यह भूल गया कि जब उदय स्कीम में वर्ष 2017-18 के लिये 6.95 प्रतिशत वृद्धि मानी गयी थी तो पावर कारपोरेशन ने उसके विपरीत 22.66 प्रतिशत औसत वृद्धि क्यों प्रस्तावित की थी। वहीं दूसरी ओर उ0 प्र0 सरकार से मिलने वाली सब्सिडी के बारे में यह जवाब दिया गया है कि सरकार वर्ष 2017-18 के लिये केवल 5500 करोड सब्सिडी दे रही है जिसमें राजस्व सब्सिडी 4260 करोड है कृषि की सब्सिडी 240 करोड है और इलेक्ट्रििसिटी डयूटी के सापेक्ष 1000 करोड की सब्सिडी हैं। सवाल यह उठता है कि राजस्व गैप को पूरा करने के लिये आज तक कभी भी सब्सिडी नही दी गयी तो इस बार कुल सब्सिडी का लगभग 77 प्रतिशत सब्सिडी राजस्व गैप को पूरा करने में क्यों खर्च की जा रही है। अब ग्रामीण विद्युत उपभोक्ताओं को जो हमेशा सरकारें बिजली दर न बढे उसके मद में सब्सिडी देती थीं इस बार उसका क्या होगा? क्या यह मान लिया जाये कि इस बार भाजपा सरकार गाॅंव की जनता को सब्सिडी नही देगी। और दूसरा सबसे बडा सवाल कि इलेक्ट्रिसिटी डयूटी के मद में जो रू0 1000 करोड की वसूली करके सरकार के खाते मंे बिजली कम्पनियाॅं जमा कराती हैं उसको सब्सिडी में शामिल किया जा रहा है लेकिन यह बताने की जहमत नही की गयी कि इस 1000 करोड का उपभोग किस श्रेणी के उपभोक्ताओं की सब्सिडी के रूप में किया जायेगा।
नियामक आयोग अध्यक्ष श्री देश दीपक वर्मा व सदस्य श्री एस के अग्रवाल ने उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष को बैठक के बाद यह आश्वस्त किया कि पावर कारपोरेशन के दबाव में कोई कार्यवाही नही की जायेगी। विद्युत अधिनियम 2003 के प्राविधानानुसार ही आयोग उचित निर्णय लेगा। दीपक वर्मा व सदस्य श्री एस के अग्रवाल के साथ लम्बी बैठक कर प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का पक्ष रखते हुए कहा जब तक बिजली कम्पनियों व पावर कारपोरेशन द्वारा एआरआर व बिजली दर प्रस्ताव में निकाली गयी समस्त कमियों पर अपना उचित जवाब आयोग को न जमा कर दें तब तक जल्दबाजी में बिजली दर प्रस्ताव को स्वीकार न किये जाने की मांग उठायी
उ0 प्र0 राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि यह कितने दुर्भाग्य की बात है कि पावर कारपोरेशन द्वारा आयोग को भेजे गये आधे अधूरे जवाब में ग्रामीण विद्युत उपभोक्ताओं की लगभग 253 प्रतिशत वृद्धि व किसानों की 80 प्रतिशत वृद्धि पर यह जवाब दिया गया है कि पहले 10 घण्टे सप्लाई मिलती थी अब गाॅंव की जनता को 18 घण्टे बिजली मिल रही है। इसलिये दरों मंे वृद्धि करना जरूरी है। सबसे बडा चैंकाने वाला मामला तो यह है कि पावर कारपोरेशन द्वारा ज्यादा वृद्धि प्रस्तावित किये जाने के पीछे एक तर्क यह भी दिया गया है कि वर्ष 2016-17 यानि कि सपा सरकार में पावर कारपोरेशन द्वारा उदय स्कीम के तहत 5.75 प्रतिशत औसत वृद्धि मांगी गयी थी लेकिन नियामक आयोग द्वारा केवल 3.18 प्रतिशत औसत वृद्धि दी गयी थी इसलिये अब व्यापक वृद्धि जरूरी है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ पावर कारपोरेशन यह भूल गया कि जब उदय स्कीम में वर्ष 2017-18 के लिये 6.95 प्रतिशत वृद्धि मानी गयी थी तो पावर कारपोरेशन ने उसके विपरीत 22.66 प्रतिशत औसत वृद्धि क्यों प्रस्तावित की थी। वहीं दूसरी ओर उ0 प्र0 सरकार से मिलने वाली सब्सिडी के बारे में यह जवाब दिया गया है कि सरकार वर्ष 2017-18 के लिये केवल 5500 करोड सब्सिडी दे रही है जिसमें राजस्व सब्सिडी 4260 करोड है कृषि की सब्सिडी 240 करोड है और इलेक्ट्रििसिटी डयूटी के सापेक्ष 1000 करोड की सब्सिडी हैं। सवाल यह उठता है कि राजस्व गैप को पूरा करने के लिये आज तक कभी भी सब्सिडी नही दी गयी तो इस बार कुल सब्सिडी का लगभग 77 प्रतिशत सब्सिडी राजस्व गैप को पूरा करने में क्यों खर्च की जा रही है। अब ग्रामीण विद्युत उपभोक्ताओं को जो हमेशा सरकारें बिजली दर न बढे उसके मद में सब्सिडी देती थीं इस बार उसका क्या होगा? क्या यह मान लिया जाये कि इस बार भाजपा सरकार गाॅंव की जनता को सब्सिडी नही देगी। और दूसरा सबसे बडा सवाल कि इलेक्ट्रिसिटी डयूटी के मद में जो रू0 1000 करोड की वसूली करके सरकार के खाते मंे बिजली कम्पनियाॅं जमा कराती हैं उसको सब्सिडी में शामिल किया जा रहा है लेकिन यह बताने की जहमत नही की गयी कि इस 1000 करोड का उपभोग किस श्रेणी के उपभोक्ताओं की सब्सिडी के रूप में किया जायेगा।
नियामक आयोग अध्यक्ष श्री देश दीपक वर्मा व सदस्य श्री एस के अग्रवाल ने उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष को बैठक के बाद यह आश्वस्त किया कि पावर कारपोरेशन के दबाव में कोई कार्यवाही नही की जायेगी। विद्युत अधिनियम 2003 के प्राविधानानुसार ही आयोग उचित निर्णय लेगा।

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