जुड़वां 2″ फिल्म में है एंटरटेनमेंट का डबल डोज

 

बीस साल पहले आई सलमान खान की, ‘जुड़वां’ को ‘जुड़वां 2’ के नाम से, फिर से देखने की क्या वजह हो सकती है, जबकि फिल्म की कहानी तो वही है। वजह है वरुण धवन और उनका अभिनय। खासतौर से उनकी कॉमिक टाइमिंग, जिससे रह-रहकर सलमान की याद आती है। कई जगहों पर तो वह सलमान से बेहतर दिखते हैं।     दूसरी वजह है फिल्म की पटकथा और संवाद, जिसे युनुस सेजवाल और साजिद-फरहाद ने आज के दौर के हिसाब से लिखा है। तीसरी वजह है फिल्म का संगीत और चौथी-पांचवी वजहें गिनाने से पहले जरा एक नजर फिल्म की कहानी पर डाल ली जाए, क्योंकि आज एक पूरी पीढ़ी ऐसी है, जो इसकी कहानी से शायद अनजान होगी।
फिल्म बिलकुल मनमोहन देसाई अंदाज में शुरू होती है। एक बैड मैन चार्ल्स (जाकिर हुसैन) को हीरो की तस्करी के आरोप में पुलिस ने पकड़ लिया है। चार्ल्स, राजीव मल्होत्रा (सचिन खेड़ेकर) की वजह से पकड़ा गया है, इसलिए वह जुड़वां बच्चों में से एक को अपने साथ ले जाता है। चार्ल्स के डर से राजीव लंदन जा कर रहने लगता है और इधर उसके दूसरे बेटे को एक महाराष्ट्रीयन महिला पाल रही है। पन्द्रह साल बाद दोनों बच्चे बड़े हो जाते हैं। मुंबई वाले का नाम है राजा (वरुण धवन) और लंदन वाले का नाम है प्रेम। दोनों एक-दूजे के हमशक्ल हैं। एक दिन वक्त और हालात ऐसे बदलते हैं कि राजा को अपने लंगोटिये यार नंदू (राजपाल यादव) के साथ लंदन जाना पड़ जाता है, जहां उसकी मुलाकात अलिश्का (जैक्लीन) से होती है। अलिश्का को राजा का टपोरी अंदाज पसंद आता है और दोनों के बीच प्यार हो जाता है। उधर, कॉलेज में प्रेम, समारा (तापसी) का दीवाना हो जाता है। दिक्कतें और उलझने तब बढ़ने लगती हैं, जब अलिश्का प्रेम को राजा और समारा राजा को प्रेम समझ बैठती है। इस उठा-पटक में एक दिन राजा का सामना चार्ल्स से हो जाता है, जो जेल से छूट चुका है और मल्होत्रा की जान का प्यासा है। चार्ल्स, टपोरी राजा को मल्होत्रा को पकड़ कर लाने के लिए कहता है और राजा चार्ल्स की ये बात मान भी जाता है। और फिर शुरू होती है मार-धाड़ और मुक्का-लात। डेविड धवन से जब पूछा गया कि वह ‘जुड़वां 2’ क्यों बना रहे हैं? उनका कहना था- ‘मुझे पुरानी जुड़वां के कई सीन्स आज भी पसंद हैं, इसलिए मैं उसी कहानी के साथ एक नई फिल्म बना रहा हूं। ये न तो सीक्वल है और न ही पार्ट 2। इसे हम रीबूट कर रहे हैं।’ वाकई, धवन ने सिवाए कलाकारों, लोकेशन और संवाद-पटकथा के अलावा कुछ भी नहीं बदला है। डेविड ने फिल्म को सीटी मार अंदाज में बनाया है, जहां कई बातें तर्क से परे हैं। जैसे कि फर्जी पासपोर्ट से राजा-नंदू का लंदन चले जाना। ऐसी और भी बहुत सी बातें फिल्म में हैं, जो गले नहीं उतरेंगी। लेकिन ये फिल्म लगातार मनोरंजन का डोज देती है। मतलब साफ है कि ये फिल्म उस जनता जर्नादन के लिए है, जो हीरो की मार-धाड़ के साथ-साथ उसकी चुटीली लाइनों और चुलबुले अंदाज को भी पसंद करती है। वरुण के रूप में राजा ऐसा ही किरदार है। लंबे समय बाद राजपाल यादव भी अपने पूरे रंग में दिखे हैं। दोनों खुल कर हंसाते हैं। जैक्लीन का ग्लैमर अंदाज चरम पर दिखता है और तापसी गंभीर छवि से परे अच्छी लगी हैं। और यही वजह है कि एक बीस साल पुरानी कहानी, अंदाज और संगीत के बावजूद इस फिल्म में मजा आता है। अगर करने के लिए कुछ खास नहीं है, तो भी इस फेस्टिव सीजन में एक बार फिर से जुड़वां देखना बनता है।

निर्देशक: डेविड धवन
कलाकार: वरुण धवन, जैक्लीन फर्नानडिस, तापसी पन्नू, राजपाल यादव, सचिन खेड़ेकर
स्क्रीनप्ले: युनुस सेजवाल
निर्माता : साजिद नाडियाडवाला
गीत : देव कोहली, अनु मलिक, दानिश साबरी

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