एलायंस टुडे ब्यूरो
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में जजों के 3700 पद हैं, लेकिन इनमें से 2000 से भी कम जज इस समय नियुक्त हैं। वर्ततान और पिछली प्रदेश सरकार ने कई भर्तियां की हैं, लेकिन मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि बीते दो वर्ष में हमें मुकदमों की संख्या कम करने में अपेक्षित सफलता नहीं मिली है। प्रदेश की न्यायपालिका के मुखिया इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस दिलीप बाबासाहेब भोसले ने शनिवार को प्रदेश की कार्यपालिका के मुखिया सीएम योगी आदित्यनाथ के समक्ष यह हालात रखे। उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से काफी सुधार किए जा रहे हैं। जहां तक जजों के खाली पदों की बात है, वे इन्हें जल्द से जल्द भरने की लिए प्रक्रिया को तेज करने का प्रयास करेंगे। यह सब हुआ लखनऊ में शनिवार को शुरू हुई न्यायिक सेवा संघ उत्तर प्रदेश की 41वीं कॉन्फ्रेंस के दौरान जिसमें यूपी की सभी जिला अदालतों के जजों सहित हाईकोर्ट के जज मौजूद थे। चीफ जस्टिस भोसले ने कहा कि दो वर्ष पहले जब वे इलाहाबाद हाईकोर्ट से जुड़े, उसी समय जिला जजों के साथ निर्धारित किया गया था कि जज हर रोज अपने कार्यसमय में 30 मिनट का इजाफा करेंगे। वहीं पांच घंटे के कार्यसमय में से एक घंटा प्रशासनिक कार्यों के लिए रखा जाता है, इसे भी न्यायिक कार्यों को देने का निर्णय किया गया था। सभी इस पर सहमत हुए थे। इसका परिणाम यह निकला कि एक साल में करीब 72 अतिरिक्त कार्यदिवस निचली अदालतों को मिले। वहीं 30 मिनट अतिरिक्त देने से 27 दिन मिले। इन प्रयासों से मुकदमों की संख्या में 35 प्रतिशत तक कमी लाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन इसे केवल 11 प्रतिशत ही कम किया जा सका। उम्मीद है भविष्य में यह गति सुधारी जा सकेगी क्योंकि प्रदेश में करीब 62 लाख मुकदमे निचली अदालतों में लंबित हैं। चीफ जस्टिस ने बॉम्बे और कर्नाटक के अपने अनुभव बताए कि वहां न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति के लिए जनवरी में भर्तियां शुरू होती हैं तो अक्तूबर तक पद भर दिए जाते हैं। जबकि यूपी में तीन-तीन वर्ष तक भर्ती प्रक्रिया जारी रहती है, ऐसा नहीं होना चाहिए।